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Narmada, Gujarat

Mar 17, 2024

क्या हमने कविताओं की सुननी छोड़ दी है?

ऐसे दौर में, जब दुनिया रौशनी की तलाश में है और उसे प्रेम की सख़्त ज़रूरत है, देहवली भीली में लिखी यह कविता हमें कविताओं से दूर जाने के ख़तरों के बारे में चेताती है

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Author

Jitendra Vasava

गुजरात के नर्मदा ज़िले के महुपाड़ा के रहने वाले जितेंद्र वसावा एक कवि हैं और देहवली भीली में लिखते हैं. वह आदिवासी साहित्य अकादमी (2014) के संस्थापक अध्यक्ष, और आदिवासी आवाज़ों को जगह देने वाली एक कविता केंद्रित पत्रिका लखारा के संपादक हैं. उन्होंने वाचिक आदिवासी साहित्य पर चार पुस्तकें भी प्रकाशित की हैं. वह नर्मदा ज़िले के भीलों की मौखिक लोककथाओं के सांस्कृतिक और पौराणिक पहलुओं पर शोध कर रहे हैं. पारी पर प्रकाशित कविताएं उनके आने वाले पहले काव्य संग्रह का हिस्सा हैं.

Illustration

Manita Kumari Oraon

मनीता कुमारी उरांव, झारखंड की कलाकार हैं और आदिवासी समुदायों से जुड़े सामाजिक व सांस्कृतिक महत्व के मुद्दों पर मूर्तियां और पेंटिंग बनाती हैं.

Editor

Pratishtha Pandya

प्रतिष्ठा पांड्या, पारी में बतौर वरिष्ठ संपादक कार्यरत हैं, और पारी के रचनात्मक लेखन अनुभाग का नेतृत्व करती हैं. वह पारी’भाषा टीम की सदस्य हैं और गुजराती में कहानियों का अनुवाद व संपादन करती हैं. प्रतिष्ठा गुजराती और अंग्रेज़ी भाषा की कवि भी हैं.