नुब्रा घाटी: तुरतुक गांव पर छाए अनिश्चितता के बादल
एलओसी के पास, हाई एल्टिट्यूड पर स्थित नुब्रा घाटी के तुरतुक गांव में बलती समुदाय के लोग जलवायु, स्थानीय अर्थव्यवस्था, और संस्कृति में बड़े बदलावों के प्रभाव से निपटने की कोशिश कर रहे हैं
स्वेता डागा, बेंगलुरु स्थित लेखक और फ़ोटोग्राफ़र हैं और साल 2015 की पारी फ़ेलो भी रह चुकी हैं. वह मल्टीमीडिया प्लैटफ़ॉर्म के साथ काम करती हैं, और जलवायु परिवर्तन, जेंडर, और सामाजिक असमानता के मुद्दों पर लिखती हैं.
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Pankhuri Zaheer Dasgupta
पंखुरी ज़हीर दासगुप्ता, दिल्ली में स्थित एक स्वतंत्र शोधकर्ता और लेखिका हैं. पंखुरी नृत्य एवं नाटक में ख़ास रुचि रखती हैं. वह 'जिंदगी ऐज़ वी नो इट' नामक साप्ताहिक पॉडकास्ट की सह-मेज़बानी भी करती हैं.